लेखनी कविता - तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के -कबीर

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तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के । हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥ सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे । बाहर का ...

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